आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की विदाई होती है इसलिए इस दिन श्राद्ध का खास महत्व होता है। सर्वपितृ अमावस्या को महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए हम आपको सर्वपितृ अमावस्या के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या के बारे में जानें
शारदीय नवरात्र से ठीक पहले जो अमावस्या पड़ती है उसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इसे महालया अमावस्या भी कहा जाता है। यह अमावस्या आमतौर पर सितम्बर या अक्टूबर में पड़ती है। इस बार यह अमावस्या 28 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन ज्ञात और अज्ञात सभी तरह के पितरों का तर्पण किया जाता है और उसके बाद पितरों की विदाई होती है।
सर्वपितृ अमावस्या है खास
इस साल शनिवार के दिन सर्वपितृ अमावस्या पड़ रही है। शनिवार अमावस्या के दिन पितरों की विदाई से उनके वंशजों के लिए अच्छा होता है। इस तरह से पितरों की विदाई वंशजों को सौभाग्य प्रदान करता है। ऐसा संयोग कम बनता है लेकिन 1999 में भी सर्वपितृ अमावस्या शनिवार को ही पड़ी थी।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ धरती पर आते हैं और सर्वपितृ अमावस्या के उनकी विदाई होती है। ऐसा माना जाता है जिन पितरों की मृत्यु की जानकारी न हो उनका भी श्राद्ध इस किया जा सकता है। साथ ही इस दिन श्राद्ध करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मानसिक शांति मिलती है। पितृपक्ष में पितृ अपने वंशजों से श्राद्ध की उम्मीद लेकर आते हैं अगर उनका विधिवत श्राद्ध नहीं होता है तो नाराज हो जाते हैं जिससे जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
विशेष मुहूर्त के बारे में
सर्वपितृ अमावस्या तिथि आरंभ: 28 सितंबर 2019 को सुबह 03 बजकर 46 मिनट से
अमावस्या तिथि खत्म हो रही है: 28 सितंबर 2019 को रात 11 बजकर 56 मिनट तक
कुतुप मुहूर्त: 28 सितंबर 2019 को सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा
रोहिण मुहूर्त: दोपहर 12 बजकर 35 से दोपहर 01 बजकर 23 मिनट तक रहेगा
अपराह्न काल: दोपहर 01 बजकर 23 मिनट से दोपहर 03 बजकर 45 मिनट तक रहेगा
सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध की विधि
हिन्दू धर्म सर्वपितृ अमावस्या का खास महत्व है इसलिए इस दिन विधिवत श्राद्ध करें। उस दिन प्रातः उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। उसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्य भगवान को जल अर्पित करें। श्राद्ध विधिवत सम्मान कराने के लिए किसी विद्वान पुरोहित को बुला लें। श्राद्ध के दिन अपनी शक्ति से स्वादिष्ट खाना बनाएं। जिसका श्राद्ध हो उसकी पसंद का खाना बनाएं। याद रखें खाना सात्विक होना चाहिए और उसमें लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न हो। ऐसी माना जाता है कि श्राद्ध के दिन याद करने से पितृ घर आते हैं भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं। इस समय पंचबलि भी दी जाती है। पंचबलि में बताए गए जानवारों को खाना दिया जाता है। पंचबलि में गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि को शामिल किया जाता है। पिंड दान करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान दें।
प्रज्ञा पाण्डेय