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Chaitra Navratri 2020: माँ शैलपुत्री को भोग में चढ़ाएं ये चीजें और इस पूजा विधि से करें प्रसन्न

By Astro panchang | Mar 24, 2020

नवरात्रि के पहले दिन पूजा से पहले कलश की स्थापना की जाती है, इस दिन कलश स्थापना के बाद शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है। शैलपुत्री माता को माँ दुर्गा के नौं रूपों में सबसे प्रथम माना जाता है। हिमालय के घर में पुत्री के रूप में उत्पन होने के कारण इनका नाम "शैलपुत्री" पड़ा। कहते है कि नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री माता की पूजा करने से मनुष्य को चंद्र दोष से मुक्ति मिल जाती है।

शैलपुत्री माता की पूजा विधि 
सबसे पहले मंदिर में एक लकड़ी की चौकी रखें उसपर लाल वस्त्र बिछाए अब शैलपुत्री माता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मूर्ति स्थापित करने के बाद उसपर एक कलश स्थापित करें, कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रख कर एक स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद कलश के पास अखंड ज्योत जलायें। अब हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प माता की मूर्ति के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद माता पर प्रसाद अर्पित करें और माता को सफेद रंग का भोग जैसे खीर या मिठाई आदि लगाएं। इसके साथ में शैलपुत्री माता के मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना है। 

वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌  ।।

स्तोत्र पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम् ।।
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम् ।।
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम् ।।

इसेक बाद माता कि कथा सुनकर उनकी आरती करें। शाम को मां के समक्ष कपूर जलाकर हवन करें।

शैलपुत्री माता की व्रत कथा
कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया। उसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया किंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया। यह बात सुनकर सती का यज्ञ में जाने के लिए मन उतारु हो गया। भगवान शिव ने सती को बिना निमंत्रण यज्ञ में जाने से मना किया लेकिन सती के आग्रह पर उन्होंने जाने की अनुमति दे दी। वहां जाने पर प्रजापति दक्ष ने सती और उनके पति का बहुत अपमान किया। इस बात से हताश होकर सती ने स्वयं को यज्ञाग्नि में भस्म कर लिया। तब भगवान शिव ने क्रोधित होकर यज्ञ को तहस नहस कर दिया। सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। काशी में इनका स्थान मढिया घाट बताया गया है जो वर्तमान में अलईपुर क्षेत्र में है।
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