होम
कुंडली
टैरो
अंक ज्योतिष
पंचांग
धर्म
वास्तु
हस्तरेखा
राशिफल
वीडियो
हिन्दी न्यूज़
CLOSE

जानिए वट सावित्री की व्रत कथा और व्रत का महत्व, क्यों की जाती है वट की पूजा?

By Astro panchang | May 21, 2020

भारत विभिन्न रीति रिवाजों और त्यौहारो को देश है, वैसे तो यहाँ पर हर महीनें कोई न कोई व्रत या त्यौहार आ ही जाता है। फिलहाल हिंदी कैलेंडर के हिसाब से ज्येष्ठ का महीना चल रहा है। इस महीने में वट सावित्री का व्रत आता है। वट सावित्री अमावस्या का व्रत ज्येष्ठ मास के व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सबसे अधिक पूजा जाने वाला पेड़ तुलसी और वट को मन जाता है। हिंदू धर्म में वट वृक्ष को बहुत पूजनीय माना जाता है। जिसका कारण है कि शास्त्रों के मुताबिक बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि तीनों देवताओं का वास होता है। पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के हिसाब से बरगद के पेड़ की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत आस्था कामना और महिलाओं के सुहाग के बारे में काफी कुछ बताता है। सावित्री का मतलब है, जो महिला हर प्रकार से कुशल हो अपने फर्ज निभाती हो।


1. क्यों रखा जाता हैं? वट सावित्री का व्रत
 
इस व्रत में सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए पूजा और व्रत करती हैं। इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं और वट वृक्ष के पास पहुंचकर धूप-दीप से सच्चे मन से पूजा करती हैं। रोली और अक्षत चढ़ाकर वट वृक्ष पर कलावा बांधती हैं। साथ ही हाथ जोड़कर वृक्ष की परिक्रमा लेती हैं। जिससे पति के जीवन में आने वाली समस्याएँ दूर होती हैं, सुख-समृद्धि के साथ लंबी उम्र प्राप्त होती है।

2. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है? वट सावित्री व्रत की पूरी कथा 

मान्यताओं के अनुसार पुराने समय में मद्र देश के राजा अश्‍वपति संतान के सुख से वंचित थे। उन्‍होंने संतान प्राप्ति के लिए सावित्री देवी की पूजा की और यज्ञ करवाया। इसके बाद उनके घर में कन्‍या का जन्‍म हुआ और राजा को संतान सुख की प्राप्ति हुई। राजा ने देवी के नाम पर ही अपनी पुत्री का नाम भी सावित्री रखा। सावित्री रूप और गुण की बेहद धनी थी। जवान होने पर सावित्री को साल्‍व देश के राजा के पुत्र सत्‍यवान से प्रेम हो गया। वहीं सत्‍यवान भी सावित्री के प्रेम में पड़ गए थे। फिर सावित्री के युवा होने पर एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर चुनने के बाद आईं। तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की विवाह के 12 वर्ष पश्चात उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। 

नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं। नारदजी ने जो सत्‍यवान की मृत्‍यु का समय बताया था। उसके करीब आने के कुछ समय पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया था। जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके साथ चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा। तो सावित्री ने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की।

 वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने व्रत के प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को दोबारा जीवित किया कर दिया था। वट के वृक्ष ने ही अपनी जटाओं में सावित्री के पति सत्‍यवान के मृत शरीर को सुरक्षित रखा था ताकि कोई उसे नुकसान न पहुंचा सके। इसलिए वट सावित्री के व्रत में काफी समय से बरगद के पेड़ की पूजा होती आ रही है। उसी समय से इस व्रत को वति सावित्री के नाम से जाना जाता है। इसमें वट वृक्ष की श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा की जाती है। सुहागन महिलाएं अपने सुहाग और कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं। सुहागन स्त्रियां श्रद्धा और सच्चे मन के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक उपवास रखती हैं।


Copyright ©
Dwarikesh Informatics Limited. All Rights Reserved.