धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक क्षीर सागर से समुद्रमंथन के समय महालक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। जिसके बाद महालक्ष्मी ने श्रीहरि विष्णु को अपने वर के रूप में स्वीकार किया था। बता दें कि महालक्ष्मी को श्री के रूप में भी जाना जाता है।