होम
कुंडली
टैरो
अंक ज्योतिष
पंचांग
धर्म
वास्तु
हस्तरेखा
राशिफल
वीडियो
हिन्दी न्यूज़
CLOSE

Maa Santoshi Vrat Katha: शुक्रवार को मां संतोषी का रखते हैं व्रत तो जरूर पढ़ें ये कथा, हर मनोकामना होगी पूरी

By Astro panchang | Feb 21, 2025

हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित माना जाता है। शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी और मां संतोषी की पूजा के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन मां संतोषी की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां संतोषी की पूजा मुख्य रूप से शुक्रवार को की जाती है। इस दिन व्रत रखने, मां की पूजा करने और व्रत कथा पढ़ने से जातक की हर मनोकामना पूरी होती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको मां संतोषी से जुड़ी व्रत कथा बताने जा रहे हैं।

संतोषी माता व्रत कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार, बहुत समय पहले की कहानी है कि एक बुढ़िया के सात बच्चे थे और इनमें से 6 बच्चे कमा रहे थे और एक बेरोजगार था। वह अपने 6 बच्चों को बड़े प्यार से खाना खिलाती थी। उसके बाद खा लेने के बाद थाली का बचा हुआ खाना अपने सातवें बच्चे को दे देती थी। सातवें बेटे की पत्नी यह सब देखकर काफी दुखी होती थी। एक दिन बहू ने अपने पति से कहा गया कि आपको बचा हुआ खाना खिलाया जाता है। जब पति सिरदर्द का बहाना बनाकर रसोई में लेटा और उसने खुद सच्चाई देख ली। यह देखकर वह परदेस जाने के लिए घर से निकल गया।

वह चलता रहा और दूर देश में कमाने आ गया। वहां एक साहूकार की दुकान थी और वह साहूकार के यहां काम करने लगा। वह साहूकार के यहां दिन-रात लगन से काम करता था और कुछ ही दिनों में सारा काम सीख लिया। वहीं लेन-देन, हिसाब-किताब और ग्राहकों को सामान बेचने आदि का काम करता था। तब साहूकार ने उसको इन सब कामों की जिम्मेदारी दी।

ससुराल वालों ने खूब किया तंग
पति के चले जाने के बाद ससुराल वाले बहु को परेशान करने लगे। घर का काम कराने के बाद वह उसको लकड़ियां लेने के लिए जंगल में भेजते थे और रोटी के आटे से जो भूसी निकलती वह उसकी रोटी बनाकर रख देते और टूटे नारियल के खोल में पानी देते थे। ऐसे ही दिन बीतते गए और एक दिन जब जंगल में लकड़ियां लेने जा रही थीं, तो रास्ते में उसने बहुत सी महिलाओं को मां संतोषी का व्रत करते हुए देखा।

वह खड़ी होकर पूछने लगी कि बहनों तुम यह क्या कर रही हो। इस व्रत को करने के क्या लाभ हैं। इस व्रत को करने की क्या विधि है। तब महिलाओं ने उसको संतोषी माता के व्रत की महिमा बताई और तब उसने भी यह व्रत करने का निश्चय किया। वहीं रास्ते में लकड़ियां बेचीं और पैसों से गुड़ और चना खरीदा। व्रत की तैयारी की और शुक्रवार को मां संतोषी का व्रत किया। रास्ते में वह संतोषी मां के मंदिर में प्रार्थना करने लगी कि मां मैं व्रत के नियम नहीं जानती और आप मेरा दुख दूर करो, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं।

मां ने प्रसन्न होकर दिया आशीर्वाद
मां संतोषी को दया आ गई और दूसरे शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ धन आया। तब उसने मां संतोषी से अपने पति के लिए प्रार्थना की। वह सिर्फ अपने पति को देखना और सेवा करना चाहती थी। इससे मां संतोषी प्रसन्न हुई और उसको आशीर्वाद देते हुए कहा कि उसका पति जल्द ही घर लौट आए। तब मां संतोषी ने बुढ़िया के बेटे को स्वप्न में पत्नी की याद दिलाई और उसको घर लौट जाने के लिए कहा।

मां संतोषी की कृपा से सातवां पुत्र अपना सारा काम समाप्त कर अगले दिन घर के लिए चल दिया। उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने गई थी और रास्ते में वह मां संतोषी के मंदिर पर गई। तब मां संतोषी उसके पति के आने की सूचना दी और कहा कि वह लकड़ियों का गट्ठर लेकर जाए और तीन बार जोर-जोर से चिल्लाकर कहे, लकड़ियों का गट्ठर ले लो सासूजी, भूसी रोटी दे दो, भूसी दे दो। नारियल के खोल में पानी दे दो। आज कौन मेहमान आए हैं।

खट्टी चीजें खाना वर्जित
घर पहुंचकर उसने वैसा ही किया और पत्नी की आवाज सुनकर पति बाहर चला गया। तब मां ने कहा कि जब से बेटा तुम गए हो, वह अब काम नहीं करती है। दिन में चार बार आकर खाना खाती है। बेटा बोला, मां मैंने उसे भी देखा है और तुमको भी। फिर वह अपनी पत्नी के साथ दूसरे मकान में रहने लगा। वहीं शुक्रवार को जब उसकी पत्नी ने उद्यापन करने की इच्छा जताई और पति की अनुमित लेकर अपने जेठ के बच्चों को निमंत्रण दिया।

जेठानी को पता था कि संतोषी मां के उद्यापन में खट्टी चीजें खाना वर्जित है। तो उसने अपने बच्चों को कुछ खटाई जरूर मांगना सिखाया। बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर कुछ खट्टा खाने की जिद करने लगे। तब उसने मनाकर दिया, तो उन्होंने अपनी चाची से पैसे मांगे और इमली खरीदकर खा ली। इससे मां संतोषी क्रोधित हो गई और राजा के सैनिक बहू के पति को पकड़ कर ले गए।

नाराज हो गई थी मां संतोषी
ऐसे में बहू ने मंदिर में जाकर माफी मांगी और दोबारा उद्यापन करने का फैसला किया। इससे उसका पति राजा से मुक्त होकर अपने घर आ गया। वहीं अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बेटों को भोजन पर बुलाया और दक्षिणा पैसे की जगह फल दिया। इससे मां संतोषी प्रसन्न हो गईं।

मां संतोषी की कृपा से कुछ समय बाद दंपति को चंद्रमा के समान ते जस्वी और सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। अपनी बहू की खुशी देखकर उसके सास-ससुर भी मां संतोषी के भक्त बन गए। मां संतोषी की व्रत कथा पढ़ने के बाद आखिर में यही कहना चाहिए, हे मां संतोषी जो फल तुमने अपनी बहू को दिया वही सबको देना। इस कथा को सुनने या पढ़ने वाले की सभी मनोकामना पूरी हो।
Copyright ©
Dwarikesh Informatics Limited. All Rights Reserved.