हिंदू धर्म में आरती का विशेष महत्व माना जाता है। इसी वजह से घर से लेकर मंदिरों तक में भगवान की पूजा के बाद आरती की जाती है। जोकि परंपरागत भी है और शुभ भी। देवी-देवताओं की आरती घर और मंदिर दोनों जगहों पर कर सकते हैं। लेकिन पवित्र नदियों की आरती घाट के किनारे ही की जाती है। वैसे तो सभी पवित्र नदियों की आरती देखना शुभ और पुण्यकारी माना जाता है, लेकिन गंगा आरती का खास महत्व होता है।
हरिद्वार, ऋषिकेश और बनारस में भव्य तरीके से गंगा आरती की जाती है। माना जाता है कि जब पंडितों द्वारा गंगा आरती की जाती है, उस समय वहां पर सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि अदृश्य रूप में देवी-देवता भी उपस्थित होते हैं। गंगा आरती जुड़ी कई रोचक बातें हैं। तो आइए जानते हैं कि गंगा आरती सिर्फ 5 पंडितों द्वारा क्यों की जाती है।
पांच पंडित क्यों करते हैं गंगा आरती
हिंदू धर्म में माना जाता है कि ब्रह्मांड पांच मूल तत्वों पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश से मिलकर बना है। ऐसे में गंगा आरती में 5 पंडित इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं पंडितों द्वारा की जाने वाली आरती के समय उनकी गतिविधियां और उपयोग में लाई जाने वाली सामग्रियां इन तत्वों के प्रति संतुलन और सम्मान बनाए रखते का प्रतीक हैं।
वहीं मनुष्य के पास 5 ज्ञानेंद्रियां आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा होती है। इन ज्ञानेंद्रिंयों को अपने नियंत्रण में रखकर पंडित इन सभी को भक्तिभाव से जोड़ते हैं। फिर गंगा आरती के दौरान वह पांच इंद्रियों के जरिए भगवान के प्रति प्रार्थना और भक्ति व्यक्त करते हैं।
धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक मनुष्य के पांच कर्मेन्द्रिया भी होती हैं। इन पांच कर्मेन्द्रिया के नाम हाथ, पैर, वाणी, गुदा और जननेंद्रिय है। वहीं आरती को इन कर्मों के समर्पण के तौर पर भी देखा जा सकता है। गंगा आरती में शामिल 5 पंडित सामूहिक रूप से इस समर्पण का प्रतिनिधित्व करते हैं। यानी की वह पंडित कर्म इंन्द्रियों को दर्शाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों का विशेष महत्व माना जाता है। जिनमें से मुख्य पांच ग्रह हैं, जोकि सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति, मंगल और बुध हैं, जोकि व्यक्ति को जीवन में मिलने वाले भौतिक सुखों को दर्शाते हैं। गंगा आरती करने वाले 5 पंडित इन पांच ग्रहों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, इसी वजह से बोला जाता है कि गंगा आरती देखने मात्र से व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।