अक्सर लोगों से यह सुनने को मिलता है कि जिस रास्ते से हनुमान मंदिर जाना चाहिए, फिर उस रास्ते से वापस नहीं लौटना चाहिए। बता दें कि यह मान्यता हिंदू धर्म की परंपराओं और ज्योतिषीय सिद्धांतों पर आधारित है। जिसका सीधा संबंध हनुमान जी और शनिदेव भगवान से है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए बताने जा रहे हैं कि आखिर हनुमान मंदिर जाने के बाद उसी रास्ते से वापस क्यों नहीं लौटना चाहिए।
क्या है ज्योतिषीय कारण
हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है और माना जाता है कि वह अपने भक्तों की शनि की साढ़े साती, ढैय्या और अन्य अशुभ प्रभावों से रक्षा करते हैं। इसलिए मंदिर से वापस आने के बाद रास्ता बदलने का नियम सिर्फ परंपरा नहीं बल्कि जीवन की नकारात्मकता और बाधाओं को वहीं पर छोड़े जाने का प्रतीकात्मक तरीका है।
माना जाता है कि जब कोई भक्त संकटमोचन हनुमान जी के मंदिर जाता है, तो वह अपने कष्ट, दुख, दुर्भाग्य और शनि से जुड़े दोष लेकर जाता है। वहीं मंदिर में दर्शन और पूजा करने से बाद यह सारे दोष, बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा वहीं छूट जाती हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के मुताबिक अगर आप फिर उसी रास्ते से जाते हैं, तो आप उन अशुभ प्रभावों और बाधाओं को अपने साथ लेकर आते हैं, जिनको आप मंदिर में छोड़ आए थे।
वहीं अलग रास्ता अपनाना एक नई शरुआत के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। ऐसा करना यह दर्शाता है कि आपने हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया है। आप अब एक नए, बाधा मुक्त और शुभ मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। यह नियम और परंपरा जीवन में पुराने कष्टों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने और सकारात्मकता के मार्ग पर चलने का संकेत देता है। रास्ता बदने से जातक यह निश्चित करता है कि आप पुरानी समस्याओं को वापस अपने घर नहीं लाएंगे।
हनुमान जी की पूजा करने और प्रसन्न करने से शनिदेव शांत होते हैं। ऐसे में मंदिर से लौटते हुए जब आप रास्ता बदलते हैं, तो यह शनि के अशुभ प्रभाव को निष्क्रिय करने का तरीका माना जाता है। यह क्रिया बताती है कि आप शनि के दोषों से मुक्त होकर एक नए और सुरक्षित मार्ग को चुन रहे हैं। जिस पर हनुमान जी की सुरक्षा बनी है। इसलिए अधिकतर भक्त हनुमान मंदिर से वापस आते समय रास्त बदलने के नियम का पालन करते हैं।