होम
कुंडली
टैरो
अंक ज्योतिष
पंचांग
धर्म
वास्तु
हस्तरेखा
राशिफल
वीडियो
हिन्दी न्यूज़
CLOSE

कैसे हुआ था श्री कृष्ण का निधन? हस्तिनापुर पर कितने वर्ष तक पांडवों ने किया राज? जानिए महाभारत के बाद का पूरा इतिहास

By Astro panchang | Sep 12, 2020

महाभारत के आदर्श नीतियों का उदाहरण आज भी कई विशेष मुद्दों पर दिया जाता है। कोरोनावायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में पुनः प्रसारण के बाद से महाभारत की लोकप्रियता और बढ़ गई है। महाभारत की पटकथा इस प्रकार लिखी गई है कि इसे बच्चों, युवा से लेकर वृद्ध भी देखना पसंद करते हैं। महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा मानव युद्ध था। महाभारत में महायुद्ध की कहानी के जरिए धर्म की जीत को उजागर किया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस विनाशकारी महायुद्ध से लगभग 80% भारतीय पुरुष आबादी की मृत्यु हो गई थी। क्या आप जानते हैं 18 दिनों तक चलने वाले महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद क्या हुआ ? किस के सर पर ताज सजा, सिंहासन की गद्दी पर कौन बैठा? क्या है महाभारत के आगे की कहानी? आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि महाभारत की युद्ध के समाप्ति के बाद आगे की कहानी क्या है।

पांडवों का हस्तिनापुर पर शासन

पांडवों ने हस्तिनापुर पर कुल 36 वर्ष तक शासन किया था। महाभारत के महायुद्ध में पांडवों को जीत हासिल हुई थी। पांचों पांडवों में सबसे श्रेष्ठ होने मे कारण युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया।कौरवों की माता गांधारी कौरव वंश का नाश हो जाने पर युधिष्ठिर के राजतिलक के दौरान ही श्री कृष्ण को दोषी ठहराते हुए उन्हें श्राप दे दिया था, गांधारी ने श्राप देते हुए कहा जिस प्रकार कौरव वंश के वंश का विनाश हुआ है,वैसे ही यदुवंश का विनाश होगा। गांधारी ने श्राप देने की मुख्य वजह यह बताया कि श्री कृष्ण के पास दिव्य शक्ति होने के कारण वह यह युद्ध को रोकने में सक्षम थे, परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया था। युद्ध ना रोकने के कारण गांधारी कृष्ण से आहत थी। महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में पूरे 18 दिन तक चला था।

यादव कुल का नरसंहार

श्री कृष्ण द्वारिका के राजा थे। गांधारी के दिए गए श्राप के कारण द्वारिका नगरी का पतन शुरू हो गया था। द्वारिका नगरी की सुख समृद्धि दिन प्रतिदिन क्षीड़ होती गई। श्री कृष्ण द्वारिका नगरी को बचाने के लिए हालात बिगड़ने पर यादव कुल को प्रभास ले गए थे, परंतु प्रभास जाने का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखा, निरंतर यादव वंश का विनाश होता रहा।  विनाश काले विपरीत बुद्धि, इस समय द्वारिका नगरी का सार्थक उदाहरण बन गया था। यादव कुल के सभी सामर्थवान लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। संपूर्ण यादव कुल वंश आपस में लड़कर खत्म हो गया। गांधारी के श्राप के कारण ही संपूर्ण यादव कुल का नरसंहार हो गया था। नरसंहार में भगवान कृष्ण,  बलराम, दारू और वभ्रु के प्राण सुरक्षित बच गए थे।

कृष्ण की मृत्यु और विष्णु अवतार

यदुवंशी कुल का विनाश होने के बाद बलराम अपने कुल को वापस चले गए थे।बलराम के वापस जाने के बाद श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र के एकांत में रहने लगे। भगवान श्री कृष्ण का बैकुंठ लौटने का समय नजदीकी था। एक दिन श्री कृष्ण वृक्ष के नीचे ध्यान अवस्था में बैठे थे तभी जरा नाम के एक शिकारी ने भूल से उनके पैरों में तीर मार दिया था। तीर लगने के बाद श्री कृष्ण ने शिकारी के समक्ष अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया था। मानव शरीर त्यागने के बाद भगवान श्री कृष्ण विष्णु रूप धारण करके बैकुंठ की ओर लौट गए। श्री कृष्ण को बैकुंठ लौट जाने के बाद ऋषि वेदव्यास ने अर्जुन को बताया कि श्री कृष्ण और उनके भाइयों का जीवन अब समाप्त हो चुका है।

हिमालय की ओर अंतिम यात्रा

एक ऋषि की सलाह पर पांडवों ने हिमालय की ओर अंतिम यात्रा पर निकल गए थे। ऋषि ने पांडवों को सलाह दी कि अब उनके उद्देश्य पूरे हो गए हैं इसलिए अब उन्हें स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने चाहिए। पांडवों ने हस्तिनापुर का राज-पाठ अर्जुन के पौत्र परीक्षित को सौंप दिया। परीक्षित को राजपाट सौंपने के बाद पांडव अंतिम यात्रा के लिए द्रोपति के साथ हिमालय ओर निकल पड़े। स्वर्ग की सीढ़ियां पर पांडव, द्रोपदी और एक कुत्ते के साथ चलना शुर किया था। यहां पांडवों की अंतिम यात्रा थी जिसे स्वर्ग की सीढ़ी कहा गया था। स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने के दौरान सर्वप्रथम द्रोपति और सबसे अंत में भीम का निधन हुआ था। द्रोपती और युधिष्ठिर के भाइयों की मृत्यु का कारण उनका लोभ, इच्छाएं और आकांक्षाएं थी।हिमालय पर स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने के दौरान धीरे-धीरे सभी ने युधिष्ठिर के साथ छोड़ दिए। माना जाता है कि स्वर्ग के द्वार पर अकेले युधिष्ठिर कुत्ते के साथ पहुंचे थे।

स्वर्ग में युधिष्ठिर,यम का मिलन

युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने वाला कुत्ता असल में यमराज थे। स्वर्ग के मुख्य द्वार पर पहुंचने के बाद यम कुत्ते का भेष त्याग कर अपने असल भेष में आते हैं और युधिष्ठिर को स्वर्ग में प्रवेश से पूर्व ही नर्क की सैर कराते हैं। नर्क में द्रोपती और युधिष्ठिर के सभी भाई अपने पाप को स्वीकार करते हैं, यह दृश्य युधिष्ठिर देखते है। युधिष्ठिर द्रोपति और अपने भाइयों को पापों से मुक्ति दिलाते हैं। भगवान इंद्र युधिष्ठिर को उनके भाई और द्रोपति को जल्द स्वर्ग लाने का दिलासा देते हुए उन्हें स्वर्ग की ओर ले कर चल देते हैं।

द्वापर युग का अंत, कलयुग का शुभारंभ

जानकारी के मुताबिक महाभारत के प्रमुख श्री कृष्ण और पांडव अपने मानव देह को त्याग कर बैकुंठ की ओर चले जाते हैं। गांधारी के श्राप के कारण यदुवंश का विनाश हो जाता है, उसके कुछ समय के उपरांत भगवान कृष्ण भी बैकुंठ की ओर अपने नश्वर शरीर को छोड़कर चले जाते हैं। भगवान कृष्ण अपने नश्वर शरीर को त्याग कर विष्णु रूप का धारण कर बैकुंठ की ओर चले जाते हैं, जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण बैकुंठ ओर लौटते हैं, उसी रात को 12:00 बजे से कलयुग का प्रारंभ हो जाता है। मिली जानकारी के मुताबिक कलयुग की अवधि 5 हजार वर्ष तक पूरी हो चुकी है। कलयुग की अवधि के बारे में स्पष्ट जानकारी के अलग-अलग मत है।


Copyright ©
Dwarikesh Informatics Limited. All Rights Reserved.