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आखिर क्यों करना पड़ा था भगवान गणेश को स्त्री रूप धारण, जानिए इसके पीछे की कहानी

By Astro panchang | Aug 26, 2020

हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं में भगवान गणेश सर्वप्रथम पूजनीय हैं। गणेश जी को कई नामों से जाना जाता है जैसे विनायक, गजानन, गणपति, गजमुख आदि। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विघ्नहर्ता भगवान गणेश का एक स्त्री स्वरुप भी है जिसे विनायकी नाम से जाना जाता है। गणेश जी का विनायक नाम भी उनके इस स्त्री स्वरुप से ही पड़ा है। धार्मिक और पौराणिक कथाओं में इस बात का स्पष्ट वर्णन है सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा से लेकर देवराज इंद्र और पवनसुत हनुमान ने भी जरूरत पड़ने पर स्त्री रूप धारण किया था। महाभारत में भी अर्जुन के स्त्री रूप का उल्लेख है। इसी प्रकार भगवान गणेश भी एक बार जरूरत पड़ने पर अपने स्त्री स्वरूप विनायकी में प्रकट हुए थे। धर्मोत्तर पुराण में विनायकी के इस रूप का वर्णन किया गया है। इसके अलावा वन दुर्गा उपनिषद में भी भगवान गणेश के स्त्री रूप गणेश्वरी का उल्लेख किया गया है। गणेश जी के स्त्री स्वरुप को कई नामों से जाना जाता है जैसे गणेशानी, गजनीनी, गणेश्वरी, गजमुखी आदि। 
भगवान गणेश के स्त्री रूप धारण करने के पीछे के कारण का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि क्यों गणेश जी को स्त्री रूप धारण करना पड़ा था।

धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश के स्त्री रूप धारण करने की कहानी माता पार्वती और अंधक नाम के दैत्य से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार अंधक नाम का एक दैत्य माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी बनाना चाहता था। जब वह माता पार्वती के पास गया यह प्रस्ताव ले कर गया तो माता उस पर क्रोधित हुई और उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस पर अंधक दैत्य ने बलपूर्वक माता पार्वती का अपहरण करने का प्रयास किया। माता पार्वती ने अपनी रक्षा के लिए अपने पति भगवान शिव को आवाज दी। अंधक दैत्य का यह दुस्साहस देखकर भगवान शिव ने क्रोध में अपना त्रिशूल उस दैत्य पर चलाया। 

महादेव का त्रिशूल अंधक दैत्य के आर पार हो गया लेकिन वह मरा नहीं। त्रिशूल लगने पर उसके रक्त की बूँदें जमीन पर गिरने लगी। पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ अंधक दैत्य के रक्त की बूँदें गिरी वहाँ अंधका नाम की राक्षसी पैदा हो जा रही थी। माता पार्वती इस बात को भली-भांति  जानती थीं कि हर दैवीय शक्ति के भीतर दो तत्व मौजूद होते हैं - पुरुष तत्व और स्त्री तत्व। पुरुष तत्व उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है और स्त्री तत्व उसे शक्ति प्रदान करता है। माता पार्वती को समझ आ गया कि अंधक दैत्य को कोई दैवीय शक्ति ही खत्म कर सकती है। तब माता पार्वती ने अंधक दैत्य को खत्म करने के लिए उन सभी देवियों को आमंत्रित किया जो साक्षात शक्ति का रूप हैं।  

माता पार्वती के बुलाने पर शक्ति रूप में सभी देवियाँ वहाँ उपस्थित हुई और अंधक का रक्त गिरने से पहले ही वे उसे अपने भीतर समा लेतीं। ऐसा करने से अंधका का उत्पन्न होना कम तो हो गया लेकिन अब भी अंधक का अंत सम्भव नहीं हो पा रहा था। तब भगवान गणेश ने अपना स्त्री रूप धारण किया। विनायकी रूप में प्रकट होकर भगवान गणेश ने अंधक दैत्य का सारा रक्त पी लिया और उसका सर्वनाश किया। 
गणेश जी का स्त्री रूप विनायकी बिलकुल माता पार्वती जैसा दिखता है। अंतर तो सिर्फ सिर का। गणेश जी के इस स्त्री स्वरुप में भी उनका सिर गज का है।
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