भगवान शिव की पूजा के बारे में जब ऋषियों ने सूतजी से पूछा कि महादेव की पूजा के क्या नियम और विधान हैं। तब सूतजी ने ऋषियों से कहा कि शिव पुराण में वर्णित शिव पूजा का विधान हर शिव भक्त को जानना चाहिए। इस विधि से महादेव को कौन से फूल, पूजन सामग्री आदि अर्पित करना चाहिए। इस विधि को जानकर शिवलिंग की पूजा करता है, उसके मनोरथ भोलेनाथ जरूर पूरे करते हैं, ऐसा शिवपुराण में बताया गया है।
ऋषियों ने पूछा हे सूतजी आप बताएं कि भगवान शिव की किन फूलों से पूजा की जाए और इसके क्या फल हैं। तब सूतजी ने कहा कि हे ऋषियों यही प्रश्न ब्रह्माजी से नारद जी ने किया था। ब्रह्माजी ने बताया कि बेलपत्र, कमलपत्र, शतपत्र सा शंखपुष्प से देवता की पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। वहीं 20 कमल का एक प्रस्थ और सहस्र बेलपत्रों का आधा प्रस्थ होता है। सोलह पल का एक प्रस्थ और दस टंक का एक प्रस्थ होता है। इतने तौल के मुताबिक इतना सब तराजू पर चढ़ाकर सकाम पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वहीं यदि निष्काम पूजा करे तो वह शिवस्वरूप हो जाता है। अगर कोई दस करोड़ पार्थिव लिंग की पूजा करता है, तो वह इच्छुक राज्य पा सकता है।
हे मुनीश्वर, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर चावल, फूल और चंदनादि सहित अखण्ड जल की धार चढ़ाकर उनकी पूजा करनी चाहिए। प्रत्येक रूथ में प्रति मंत्र से एक बेलपत्र या शतपत्र या कमल चढ़ाना चाहिए। शंखपुष्पों से विशेष विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। जो दोनों लोगों में सर्वकाम प्रदायक है। इसके बाद दीप-धूप, नैवेद्य, आरती, प्रदक्षिणा और नमस्कार कर क्षमा विसर्जन करें।
इस तरह सांगोपांग पूजा भोग और राज्य प्रदायक है। रोग से मुक्त होने के लिए 50 कमल पुष्प, कन्या की इच्छा करने वाला 25 हजार कमल पुष्प से, विद्या के लिए इससे भी आधे से, उच्चाटन के लिये उतने ही परिमाण से, वाणी के लिये घृत से, मारण में एक लक्ष से, मोहन में उससे आधे से, राजा के वशीकरण के लिये दश लाख फूलों से पूजा करे। यश के लिए इतना ही, ज्ञान के लिए एक करोड़ और शिव दर्शन के लिए उससे आधे से पूजा करनी चाहिए। कार्य फल सिद्धि के लिए मृत्युञ्जय का जाप करना चाहिए और इसमें 5 लाख बार जब किया जाए, तो शिव जी प्रसन्न होते हैं।
जो भी व्यक्ति मुक्ति चाहते हों, उनको कुशा से शिवजी की पूजा करें। तो एक लाख की संख्या तो सर्वत्र जानें। आयु की इच्छा वाला एक लाख दूर्वा से और पुत्र की इच्छा रखने वाला एक लाख फूलों से जिसकी डंडी लाल हो। भगवान शिव करें और तुलसी पूजा से भक्ति-मुक्ति प्राप्त होती है। प्रताप के लिए आक के लिए फूल चढ़ाना चाहिए, शत्रु की मृत्यु होवे इसके लिए एक लाख फूल चढ़ाएं, तो बड़ा फल प्राप्त होता है। ऐसा कोई फूल नहीं, जो भगवान शिव को प्रिय न हो। चंपा और केतकी के फूल छोड़कर शिवजी पर सब फूल चढ़ा सकते हैं। वहीं चावल को चढ़ाने से लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
शिवजी पर चढ़ाए जाने वाले चावल अखंडित होने चाहिए और इनको भक्तिपूर्वक चढ़ाना चाहिए। इसकी संख्या एक लाख हो या फिर छः प्रस्थ या तीन प्रस्थ या दो पल होवे। चावल द्वारा रूद्र को पूजे और उस पर एक सुंदर वस्त्र शिवजी को अर्पित करें। भगवान शिव को चावल चढ़ाने का यह एक सुंदर विधान है। इसके ऊपर एक गंध, श्रीफल और पुष्पादि चढ़ाएं। फिर धूप-दीप करके पूजन का फल प्राप्त करें और दो रुपया माशे की संख्या से दक्षिणा दें।
इस तरह से जब विधि-विधान और मंत्र पूर्वक भगवान शिव की पूजा हो जाए, तो 12 ब्रह्मणों को भोजन कराना चाहिए। यहां पर मंत्र की 108 विधियां कही गई हैं। एक लाख पल तिल चढ़ाने से महापाप का नाश होता है और 11 पल यानी की चौंसठ मासा एक लाख तिल के बराबर होता है। हित कामना के लिए पूर्ववत पूजन करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। ऐसा करने से बड़े से बड़ा दुख खत्म होता है। एक लाख या आठ प्रस्थ जौ चढ़ाने से स्वर्ग और सुख की वृद्धि होती है।
इस तरह से हर कार्य के लिए प्रत्येक विधि से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। ज्वर प्रलाप की शांति के लिए जल की धारा मंगल देती है। एकादश रुद्र मन्त्र, रुद्र जाप, शतरुद्रिय मन्त्र, रुद्र सूक्त, षडंग, महामृत्युञ्जय और गायत्री के अन्त में नमः लगाकर नामों से या दूसरे शास्त्रोक्त मन्त्रों से जल की धारा करे। अगर घर में रोजाना कलह होता है, तो शिव जी पर जल की धारा अर्पित करना चाहिए। इससे सब दुख खत्म होते हैं। शत्रु को तपाना हो, तो शिवजी पर तेल की धारा चढ़ाना चाहिए। शहद से शिवजी का पूजन करने से यक्ष राज होता है।
गन्ने के रस से शिवजी का पूजन करने से जीवन में आनंद मंगल आता है। गंगाजी की धारा चढ़ाने से भक्ति और मुक्ति की प्राप्ति होती है। इसकी 10 हजार संख्या का विधान है। इसके बाद 11 ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इस तरह से सूतजी ने कहा- हे मुनिश्वर जो भी आपने पूछा वह आपको कह सुना दिया। जो स्कंद और उमा सहित शिवजी की सविधि पूजा करता है, वह पुत्र-पौत्रादिकों के साथ सभी सुखों को भोग कर अंत में महेश्वर लोक का भागी होता है।