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राम नवमी 2020 शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा, आरती एवं महत्त्व

By Astro panchang | Apr 01, 2020

हिन्दू धर्म में भगवान राम का एक विशेष दर्जा है। भगवान राम का जन्म त्रियायुग में असुरों का नाश करके धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए हुआ था। भगवान राम के जन्म दिवस को रामनवमी के रुप में मनाया जाता है। इस वर्ष रामनवमी का त्यौहार 2 अप्रैल को मनाया जायेगा। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग रामनवमी को बड़े उत्साह के साथ मानते है

रामनवमी शुभ मुहूर्त:- 11 बजकर 10 मिनट से 1 बजकर 40 मिनट तक 

रामनवमी का महत्व 
पुराणों के अनुसार भगवान राम, भगवान विष्णु का सातवां अवतार है। असुरों का नाश कर धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन मनुष्य रूप यानि भगवान राम के रूप में जन्म लिया। भगवान राम ने अहंकारी रावण का वध करके धरती पर पुनः धर्म की स्थापना की थी भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम का दर्जा दिया गया हैं 

रामनवमी का उत्सव 
रामनवमी के दिन भगवान राम की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस दिन भक्त रामायण और रामचरित मानस का पाठ करते है और कई जगह भजन कीर्तन का आयोजन भी होता हैं रामनवमी के दिन भगवान राम को झूला झुलाने की भी परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति होती है

रामनवमी की पूजा विधि 
रामनवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ़ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा वाले स्थान पर भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान श्री राम के साथ माता सीता और लक्ष्मण को रोली से तिलक करें। तिलक के बाद चावल, फूल, घंटी और शंख भगवान श्री राम को अर्पित करें। इसके बाद भगवान राम के मंत्रों का जाप करें।

आदि राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।

मंत्र का अर्थ- श्रीराम वनवास गए वहां स्वर्ण मृग का का वध किया। वैदेही यानी सीताजी का रावण ने हरण कर लिया, रावण के हाथों जटायु ने अपने प्राण गंवा दिए। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंकापुरी का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया। ये रामायण की संक्षिप्त कहानी है।

मंत्रों के जाप के बाद रामायण और रामचरित मानस का पाठ करें। आखिर में भगवान राम की आरती उतारें, आरती के बाद भगवान राम को खीर का भोग लगायें और उन्हें झूला झुलायें। 

भगवान राम की आरती 

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |
नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं ||

कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं |
पटपीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमि जनक सुतवरं ||

भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन |
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं ||

सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां |
आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं ||

इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं |
मम ह्रदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं ||

मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो |
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ||

एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली |
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली ||


भगवान राम की कथा 
पुराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री राम, राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र थे। राजा दशरथ बहुत ही ताकतवर राजा थे। उनकी ताकत का डंका सभी राज्यों में बजता था। राजा दशरथ ने अपने जीवन में तीन विवाह किये, उनके तीनों विवाह से उन्हें कोई बभी पुत्र नहीं हुआ। जिसके कारण वो हमेशा परेशान रहते थे राजा दशरथ ने पुत्र पाने की इच्छा अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ से बताई। महर्षि वशिष्ठ ने विचार कर ऋषि श्रृंगी को आमंत्रित किया। ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का प्रावधान बताया।

ऋषि श्रृंगी के निर्देशानुसार राजा दशरथ ने यज्ञ करवाया जब यज्ञ में पूर्णाहुति दी जा रही थी उस समय अग्नि कुण्ड से अग्नि देव मनुष्य रूप में प्रकट हुए तथा अग्नि देव ने राजा दशरथ को खीर से भरा कटोरा प्रदान किया। तत्पश्चात ऋषि श्रृंगी ने बताया हे राजन, अग्नि देव द्वारा प्रदान किये गए खीर को अपनी सभी रानियों को प्रसाद रूप में दीजियेगा। राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनो रानियों कौशल्या, कैकेयी एवम सुमित्रा में बांट दी। 

प्रसाद ग्रहण के पश्चात निश्चित अवधि में अर्थात चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा दशरथ के घर में माता कौशल्या के गर्भ से राम जी का जन्म हुआ तथा कैकेयी के गर्भ से भरत एवं सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण तथा शत्रुधन का जन्म हुआ। राजा दशरथ के घर में चारो राजकुमार एक साथ समान वातावरण में पलने लगे।

श्री रामनवमी की कहानी लंकाधिराज रावण से शुरू होती है। रावण अपने राज्यकाल में बहुत अत्याचार करता था। उसके अत्याचार से पूरी जनता त्रस्त थी, यहां तक की देवतागण भी, क्योंकि रावण ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान ले लिया था। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना करने लगे। फलस्वरूप प्रतापी राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान विष्णु ने राम के रूप में रावण को परास्त करने हेतु जन्म लिया। तब से चैत्र की नवमी तिथि को रामनवमी के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि नवमी के दिन ही स्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना शुरू की थी।
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