आज देशभर में मुस्लिम समुदाय के लोग बारावफात मना रहे हैं। इसको मिलाद उन नबी भी कहा जाता है। यह दिन पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मिलाद उन नबी भारत, मलेशिया, श्रीलंका और सभी मुस्लिम आबादी वाले देशों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल में यह पर्व मनाया जाता है। हालांकि सुन्नी और शिया संप्रदायों के अनुसार पैगंबर मुहम्मद के जन्म की सही तारीख अलग-अलग है। पैगंबर इस्लाम के बारे में मान्यता है कि अल्लाह ने उनको शिक्षक बनाकर धरती पर भेजा था। तो आइए जानते हैं ईद ए मिलाद के धार्मिक महत्व और उनकी सीख के बारे में...
कैसे मनाया जाता है यह पर्व
इस पर्व से एक दिन पहले रात से जलसे शुरू हो जाते हैं। इस दिन घरों और मस्जिदों को सजाया जाता है और वहीं शहरों में लोगों द्वारा जुलूस भी निकाला जाता है। जहां पर यह जुलूस खत्म होता है, वहां पर एक भव्य जलसा किया जाता है। जुलूस निकालने के दौरान लोग रास्ते में खाने-पीने की तमाम चीजें बांटते हैं। इस दिन अल्लाह की विशेष रूप से इबादत की जाती है और लोग एक-दूसरे के गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं।
हदीसों को याद करने का दिन
ईद ए मिलाद के मौके पर मस्जिदों में कुरआन की तिलावत की जाती है और नात-ए-पैग़म्बर पढ़ी जाती है। वहीं गलियों और मोहल्लों को रोशनी से सजाया जाता है। इस दिन नबी-ए-पाक के हदीसों को याद किया जाता है, जिससे कि लोग अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकें। वहीं इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को खाना खिलाया जाता है और उनको दान दिया जाता है।
महत्व
इस दिन को मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य सिर्फ जश्न नहीं है बल्कि रूह को भी पाक-साफ करने का भी दिन है। पैग़म्बर की बताई राह पर चलने का अनुसरण किया जाता है। इस दिन को मनाए जाने का मकसद है कि पैगंबर के बताए तालीमात को अपनी जिंदगी में अपनाएं और उन्हीं के बताए रास्ते पर चलें।