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नवरात्रि में नौ देवियों के इन नौ बीज मंत्रों का करें जाप, हर मनोकामना होगी पूर्ण

By Astro panchang | Oct 08, 2020

इस बार शारदीय नवरात्रि की शरुआत 17 अक्टूबर 2020 से हो रही है। हिंदू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। इन नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि नवरात्रि में माँ शक्ति के अलग-अलग रूपों की उपासना करने से विशेष फल मिलता है। माता के इन सभी नौ स्वरूपों का का अपना अलग महत्व है और इनकी पूजा से अलग-अलग फल मिलते हैं। आज के इस लेख में हम आपको माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों और उनकी उपासना के बीज मंत्र के बारे में बताएंगे -      

शैलपुत्री
ह्रीं शिवायै नम:।
नवरात्रि के पहले दिन माता दुर्गा के पहले स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा होती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। यह वृषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं।
 

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ब्रह्मचारिणी
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। माँ दुर्गा का यह स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं की उपासना की जाती है। इनके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है।

चंद्रघण्टा
ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघण्टा का है। नवरात्रि के तीसरे दिन इन्हीं की पूजा - आराधना की जाती है। माता का यह स्वरूप अत्यंत शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण माता के इस स्वरूप का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

कूष्माण्डा
ऐं ह्री देव्यै नम:।
नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा की आराधना की जाता है। यह माता दुर्गा का चौथा स्वरूप है। माता कूष्माण्डा की उपासना भक्त सिद्धियों, निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक से मुक्त होते हैं। माता कूष्माण्डा भक्तों को सुख, समृद्धि और उन्नति प्रदान करने वाली हैं।
 

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स्कन्दमाता
ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
मां दुर्गा का पाँचवा स्वरूप स्कन्दमाता का है। भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण माता के इस स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के पाँचवे दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। ये सुख-शांति और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। स्कंदमाता अपने सभी भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।

कात्यायनी
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की उपासना की जाती है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माता उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। नवरात्रि के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। इनकी उपासना से भय, रोग-शोक से मुक्ति मिलती है।

कालरात्रि
क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
माँ दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि का है। सप्तमी के दिन माता के इस स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि सभी पापों को दूर करने वाली और शत्रुओं का संघार करने वाली हैं। इनकी आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
महागौरी
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
माँ दुर्गा के आठवां स्वरूप महागौरी का है। इनकी उपासना से अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। अष्टमी के दिन महागौरी की उपासना का विधान है। महागौरी अमोघ फलदायनी हैं। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।

सिद्धिदात्री
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
नवरात्रि के अंतिम दिन माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। माता सिद्धदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। इनकी उपासना से  भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
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