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इस साल सूर्य देवता हुए लेट, मकर संक्रांति की तारीख पर पड़ा प्रभाव

By Astro panchang | Jan 11, 2020

मकर संक्रांति हिन्दुओं का सबसे प्रसिद्ध त्योहार माना जाता है। मकर संक्रांति लोहड़ी के अगले दिन बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। लोहड़ी पंजाबियों का तो मकर संक्रांति  हिंन्दुओं का महत्वपूर्ण दिन होता है। हर साल लोहड़ी 13 जनवरी और मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती थी, लेकिन इस साल सूर्य देवता धनु राशि से निकल कर मकर राशि में 15 को प्रवेश करेंगे जिसकी वजह से 8 साल बाद मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। 
 
क्यों मनाते है मकर संक्रांति- सूर्य दो भागों की तरफ करवट लेता है जिसकी एक तरफ उत्तर और दूसरी तरफ दक्षिण होता है। जब सूर्य दक्षिण से होकर उत्तर की ओर प्रस्थान करता है, तो उसे मकर संक्रांति का नाम दिया गया है साथ ही मकर का मतलब मकर राशि और संक्रांति का मतलब संक्रमण होना। सूर्य का मकर राशि की ओर संक्रमण होने की स्थिति से भी इसका नाम मकर संक्रांति पड़ा। मकर संक्रांति महाभारत काल से प्रसिद्ध मानी जाती है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने भी अपने  शरीर को त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही दिन चुना था।
 
मकर संक्रांति का मुहूर्त- मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त सुबह 07:19 से 12:31 तक होगा। मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घर में पूजा-पाठ के साथ काफी और भी पुण्य के काम करते है उनके लिए 07:19 से 09:03 तक का शुभ मुहूर्त रहेगा।
 
क्या होता है मकर संक्रांति के दिन- 
 
मकर संक्रांति से वसंत ऋतु का आगाज हो जाता है और मकर संक्रांति सारी दुनिया में फसलों के उगने की ख़ुशी में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सरसों के खेत में फूल आने से सारे खेत पीले नज़र आने लगते हैं।
 
मकर संक्रांति को हर जगह अपने तरीकों से मनाया जाता है जैसे दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल और उत्तर भारत में लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव के नाम से जाना जाता है।
 
मकर संक्रांति की खुशी में सब लोग गुड़-तिल के लड्डू बनाते है, सर्दियाँ होने की वजह से मकर संक्रांति के दिन इन लड्डुओं को बनाया जाता था। इन लड्डुओं को इसलिए भी बनाया जाता है ताकि सर्दी की वजह से होने वाली बिमारियों से छुटकारा मिल सके।
 
मकर संक्रांति की पूजा विधि- मकर संक्रांति के दिन पानी में तिल डालकर उसका स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद साफ़ कपड़ों को पहनें और पूजा स्थल को अच्छे से साफ़ कर लें, मंदिर के नीचे जमीन पर चन्दन से सूर्य देवता बनाकर उसमें कमल का फूल सबसे पहले चढ़ाएं, फूल चढ़ाने के बाद हाथ में चावल के दाने लेकर सूर्य देव के मंत्र का उच्चरण करें। अब मंदिर में सूर्य के चित्र को धारण करके अच्छे से उनकी पूजा करें जिसमें धुप, चावल, फूल और दीप जलाएं।
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