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जानिए भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ी रोचक जानकारियां

By Astro panchang | Jun 22, 2020

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां पर हर धर्म के अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। हर त्यौहार का अपना एक अलग महत्व होता है। हर दिन कोई न कोई त्यौहार मनाया ही जाता है तो इसी तरह आज हम आपको बताने वाले हैं, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के बारे और इस यात्रा का क्या महत्व है, क्यों निकाली जाती है और कहां मनाया जाता है? भारत देश के ओड़िशा राज्य के तटवर्ती शहर पूरी में भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर है। जगन्नाथ मंदिर को हिन्दू धर्म में चार धाम से से एक माना गया है। यहाँ हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जो भारत ही नहीं वरन विश्व प्रसिद्ध है। जगन्नाथपुरी को मुख्यतः पुरी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 4 जुलाई को निकलेगी। जगन्नाथ रथ उत्सव 10 दिन का होता है, इस दौरान यहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं।

यात्रा में शामिल होने वालों को मिलता है पुण्य
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्णजी का अवतार माना गया है। जिनकी महिमा का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में भी किया गया है। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ रथयात्रा में भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ शामिल होता है, जो इस रथयात्रा के दौरान इसमें शामिल होकर रथ को खींचते हैं तो उन्हें सौ यज्ञ के जितना पुण्य मिलता है। रथयात्रा के दौरान लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं एवं रथ को खींचने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है। जगन्नाथ यात्रा हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है, जो इस वर्ष 4 जुलाई को निकलेगी। यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर से श्रद्धालु यहां पहुँच रहें हैं। 

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
हिन्दू धर्म में हर त्यौहार का अलग महत्व है, इसी तरह जगन्नाथ रथ यात्रा का भी एक बहुत बड़ा महत्व है। मान्यताओं के अनुसार रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुँचाया जाता है। यहाँ भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं। गुंडिचा माता मंदिर में भारी तैयारी की जाती है एवं मंदिर की सफाई के लिये इंद्रद्युमन सरोवर से जल लाया जाता है। यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है। चार धाम में से एक धाम जगन्नाथ मंदिर को माना गया है। इसलिए जीवन में एक बार इस यात्रा में शामिल होने का शास्त्रों में भी उल्लेख हैं। जगन्नाथ रथयात्रा में सबसे आगे भगवान बालभद्र का रथ रहता है, बीच में भगवान की बहन सुभद्रा का एवं अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ रहता है। इस यात्रा में जो भी सच्चे भाव से शामिल होता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देश में एक पर्व की तरह मनाई जाती है, इसलिए पुरी के अलावा कई जगह ये यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं और इतिहास हैं। बताया जाता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की चाह रखते हुए भगवान से द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन को रथ में बैठाकर नगर का भ्रमण करवाया। जिसके बाद से यहाँ हर वर्ष जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है। 

इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा की प्रतिमायें रखी जाती हैं और उन्हें नगर का भ्रमण करवाया जाता है। यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं, जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। यात्रा का वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, बह्म पुराण आदि में मिलता है। इसीलिए यह यात्रा हिन्दू धर्म में काफी खास है और इसे बड़े त्यौहार की तरह धूम-धाम से मनाया जाता है।

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