जानें शारदीय नवरात्रि की शुभारंभ 17 अक्टूबर यानि शनिवार से होने वाला है। हिन्दू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में नवदुर्गा की पूजा-आराधना करने से माँ मनवाँछित फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि पूजन में माँ नवरात्रि कथा, दुर्गा चालीसा, आरती और श्रीदुर्गा सप्तशती पाठ करने का विशेष महत्व है। नवरात्रि में कलश स्थापना के बाद श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है। श्रीदुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं जिनमें माँ दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ विधिपूर्वक करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। आज के इस लेख में हम आपको श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करने की सही विधि के बारे में बताएंगे -
श्रीदुर्गा सप्तशती पाठ करने की विधि :
श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले सर्वप्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। अगर कलश स्थापना की गई है तो कलश पूजन, नवग्रह पूजन एवं ज्योति पूजन करने के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।
सप्तशती पाठ से पहले श्रीदुर्गा सप्तशती किताब को किसी शुद्ध आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें। फिर इसका विधि पूर्वक कुंकुम,चावल और पुष्प से पूजन करें। उसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुँह करके अपने माथे पर भस्म, चंदन या रोली लगाकर चार बार आचमन करें।
श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ में कवच, अर्गला और कीलक स्तोत्र के पाठ से पहले शापोद्धार करना आवश्यक माना गया है। दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र, ब्रह्मा, वशिष्ठ और विश्वामित्र जी द्वारा शापित किया गया है। इसलिए शापोद्धार के बिना इसका सही फल प्राप्त नहीं होता।
यदि एक दिन में सप्तशती का पूरा पाठ करना संभव ना हो तो पहले दिन केवल मध्यम चरित्र का पाठ करना चाहिए। दूसरे दिन बचे हुए दो चरित्रों का पाठ कर सकते हैं। इसके अलावा एक विकल्प यह भी है कि पहले दिन प्रथम अध्याय का पाठ, दूसरे दिन द्वितीय अध्याय का दो आवृत्ति पाठ और तृतीय अध्याय का पाठ, तीसरे दिन चौथे अध्याय का एक आवृत्ति पाठ, चौथे दिन पाँचवे, छठे, सातवें और आठवें अध्याय का पाठ, पाँचवे दिन नौवें और दसवें अध्याय का पाठ, छठे दिन ग्यारहवें अध्याय का पाठ, सातवें दिन 12वें और 13वे अध्याय का पाठ करें। इस प्रकार सात दिन में श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ पूरा कर सकते हैं।
श्रीदुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का रोजाना पाठ करने से वाक सिद्धि और मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है। लेकिन इसे पूरे विधि-विधान के साथ किया जाना आवश्यक है।
श्रीदुर्गा सप्तशती में नर्वाण मंत्र का विशेष महत्व है। के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र ''ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे'' का पाठ करना आवश्यक है। इस मंत्र में माता सरस्वती, लक्ष्मी और काली के बीजमंत्र निहित हैं।
संपुट पाठ विधि:
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है। लेकिन यह अतिफलदायी है। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए। या कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं।