हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। जब प्रदोष व्रत मंगलवार को आता है, तो उसको भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस बार 22 जुलाई 2025 को भौम प्रदोष व्रत किया जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत में कथा पढ़ना व सुनना काफी पुण्यदायी माना जाता है। साथ ही भौम प्रदोष व्रत कथा को पढ़ने व सुनने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होने के साथ ही देवों के देव महादेव की कृपा और आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। साथ ही जातक को आर्थिक परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको भौम प्रदोष व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
भौम प्रदोष व्रत कथा
सूतजी बोले, मैं मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत का विधान कह रहा हूं। भौम प्रदोष का व्रत व्याधियों का नाशक है और इस व्रत में जातक को गेहूं और गुड़ का भोजन एक समय करना चाहिए। इस व्रत करने से जातक के सभी पाप और रोग दूर होते हैं। प्राचीन समय में एक बुढ़िया ने इस व्रत को किया था और उसको मोक्ष प्राप्त हुई थी। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी, उसके बेटे का नाम मंगलिया था। उस बुढ़िया को हनुमान जी पर अटूट श्रद्धा थी। वह हर मंगलवार को हनुमान जी का व्रत करती और उनका भोग लगाती थी। वहीं वह वृद्धा न तो मंगलवार को घर लीपती थी और न मिट्टी खोदती थी।
जब वृद्धा को व्रत रखते हुए काफी समय बीत गया, तो हनुमानजी ने सोचा कि चलो आज इस वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा ली जाए। ऐसे में हनुमान जी साधु का वेष बनाकर वृद्धा के द्वार पहुंचे और पुकारा अगर कोई हनुमान भक्त हो, तो वह हमारी इच्छा पूरी करें। यह सुनकर वृद्धा बाहर आई और बोली महाराज आपकी क्या इच्छा है। साधु वेषधारी हनुमान जी बोले कि वह बहुत भूखे हैं और भोजन करना चाहते हैं, इसलिए थोड़ी सी जमीन लीप दे। इस पर वृद्धा ने हाथ जोड़कर कहा कि महाराज लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा आप जो भी कहेंगे मैं करने तो तैयार हूं।
इस बार साधु ने कहा कि यदि तू लीप और मिट्टी खोद नहीं सकती है, तो अपने बेटे को बुला मैं उसको औंधा लिटाकर उसकी पीठ पर आग जलाकर अपने लिए भोजन बनाउंगा। यह सुनकर वृद्धा के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन वह साधु से वचन हार चुकी थी। ऐसे में उसने अपने बेटे मंगलिया को बुलाकर साधु महाराज के हवाले कर दिया। साधु ने वृद्धा के हाथों उसके बेटे को ओंधा लिटाकर उसकी पीठ पर आग जलवाई।
बेटे की पीठ पर आग जलाकर वृद्धा दुखी मन से अपने घर में चली गई। फिर साधु महाराज ने उसको बुलाया और कहा कि अपने बेटे मंगलिया को पुकारे, जिससे कि वह भी भोग लगा सके। तब वृद्धा ने आंखों में आंसू भरकर और हाथ जोड़कर साधु से कहा कि पुत्र का नाम लेकर अब उसके हृदय को और दुख न दें। लेकिन साधु महाराज नहीं माने, जिससे वृद्धा को हार मानकर अपने पुत्र मंगलिया को बुलाना पड़ा। वृद्धा के बुलाते ही मंगलिया हंसता हुआ घर में दौड़ आया। बेटे को जीता-जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ और वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी। जिसके बाद साधु महाराज ने अपनी असली रूप में दर्शन दिए। अपने आंगन में हनुमान जी को देखकर वृद्धा का जीवन सफल हुआ और वह मोक्ष को प्राप्त हुई।