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कालाष्टमी पर भैरवनाथ की पूजा से दूर होते हैं सभी भय और संकट, जानें पूजन विधि

By Astro panchang | Jan 04, 2021

प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। यह तिथि भगवान शिव के अंश रूप कालभैरव को समर्पित होती है। कालाष्टमी को भैरव जयन्ती या भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी पंचांग के अनुसार 6 जनवरी को कालाष्टमी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काल भैरव को रोग, भय, संकट और दुख को हरने वाला माना जाता हैं। इस दिन भगवान भैरव और माँ दुर्गा का दर्शन और पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है। काल भैरव की आराधना से व्यक्ति में साहस आता है, शत्रुओं का नाश होता है और हर तरह की मानसिक और शारीरिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भैरवनाथ की उपासना से आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। कालाष्टमी के दिन श्रद्धा-भक्ति के साथ भैरव बाबा की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं और कार्यों में सफलता मिलती है।

कैसे करें भगवान भैरव की पूजा 
कालाष्टमी पर प्रातःकाल उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत संकल्प लें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान भैरव की पूजा-अर्चना से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। कालाष्टमी का व्रत करने से भक्तों सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन कालभैरव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। भगवान भैरव को अबीर, गुलाल, चमेली का तेल, चावल, फूल और सिंदूर अर्पित करें। कालाष्टमी के दिन किसी मंदिर में काजल और कपूर का दान अवश्य करें।

कालाष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार विष्णु और ब्रह्मा में इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है। इस विवाद को खत्म करने के लिए भगवान शिव ने एक सभा का आयोजन किया। इस सभा में बहुत से ऋषि-मुनि और महात्मा आए। शिव ने इस सभा में जो निर्णय लिया वह सभी को स्वीकार्य था। लेकिन ब्रह्माजी, भगवान शिव के इस निर्णय से संतुष्ट नहीं थे। ब्रह्माजी ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया। इस अपमान को शिव सहन न कर सके और उन्होंने रूद्र रूप धारण कर लिया। भगवान शिव के रौद्र रूप को ही कालभैरव कहा जाता है। इस रौद्र रूप में शिवजी कुत्ते पर सवार थे और उनके हाथों में दण्ड था। भगवान शिव ने क्रुद्ध होकर ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। तब से भगवान शिव के कालभैरव रूप की पूजा होती है। 

कालाष्टमी व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है। भगवान भैरव की सवारी कुत्ता है। भगवान भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए कालाष्टमी के दिन काले कुत्‍ते को मीठी रोटियां खिलानी चाहिए। इस दिन भैरव नाथ की चालीसा और कथा पढ़ें और श्रद्धा-भाव से बजन-कीर्तन करें। इस दिन रात को चंद्रमा को जल अर्पित करना चाहिए। कालाष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत का भी विधान है। इसके बाद रात में 12 बजे के बाद शंख, नगाड़ा और घंटा बजाकर भैरवनाथ की आरती करें।
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