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Pitru Paksha 2025: पितरों की आत्मा शांति के लिए इन पावन धामों में करें पिंडदान, मिलेगी महामुक्ति

By Astro panchang | Sep 03, 2025

श्राद्ध सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि यह हमारे पूर्वजों की याद, सम्मान और आभार जताने का एक तरीका है। यह एक पवित्र समय है, जब हम पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको याद करते हैं। इस दौरान पिंडदान, तर्पण और दान जैसी क्रियाएं की जाती हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में किया गया श्राद्ध पूजन सीधा हमारे पूर्वजों तक पहुंचती है और पितरों को शांति प्रदान करता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए उन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर किया गया श्राद्ध पितरों को संतोष, सुख और मुक्ति का माध्यम बनता है।

गया, बिहार

गया को लेकर मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध पूजन करने से सात पीढ़ियों तक के पितरों को मुक्ति मिलती है। बिहार के गया में फाल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर पर पिंडदान और तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि यहां पर भगवान विष्णु के चरणचिन्ह मौजूद हैं। जबकि पौराणिक मान्यता है कि यहां पर सीताजी ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। जिस कारण इस जगह को मुक्तिधाम भी कहा जाता है। यहीं कारण है कि हर साल पितृपक्ष के मौके पर लाखों की संख्या में लोग यहां पर आते हैं।

वाराणसी

वाराणसी यानी की काशी को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां किए गए कर्म सीधे मुक्ति का द्वार खोलते हैं। यहां पर मणिकर्णिका घाट और पिशाचमोचन कुंड पर भी श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। माना जाता है कि काशी में त्रिपिंडी श्राद्ध जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से श्राद्ध की आत्मा को शिवलोक तक पहुंचता है।

इलाहाबाद

इलाहाबाद नाम सुनते ही गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम याद आता है। यहां पर कुंभ और अर्धकुंभ का आयोजन होता है। इसके अलावा इलाहाबाद के संगम घाट को पितृ पक्ष के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। यही कारण है कि लोग शुभ तिथियों पर लोग यहां आकर स्नान और पिंडदान करते हैं।

हरिद्वार

गंगा तट पर बसे हरिद्वार को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है। यहां पर नारायण शिला और कुशावर्त घाट पर पितरों के श्राद्ध की पूजा की जाती है। हर की पौड़ी पर तर्पण करना विशेष फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि अगर किसी आत्मा को प्रेतयोनि का कष्ट है, तो नारायण शिला पर किए गए श्राद्ध से उसको मुक्ति मिलती है। इस कारण हर साल श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार पर भीड़ उमड़ती है। 

बद्रीनाथ

उत्तराखंड का ब्रदीनाथ चारो धामों में से एक है। यहां जगह श्राद्ध के लिए अत्यंत पवित्र स्थान है। बद्रीनाथ मंदिर के पास ब्रह्मकपाल घाट स्थित है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलती है। इसलिए श्रद्धालु अपने पितरों का अंतिम श्राद्ध करना शुभ मानते हैं। यहां किया गया श्राद्ध गया से कई गुना फलदाई माना जाता है।

द्वारका

गुजरात की द्वारका नगरी को भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थाना माना जाता है। द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन के साथ ही यहां पर पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और श्राद्ध करते हैं। समुद्र किनारे बसे द्वारका को आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद शक्तिमाली माना गया है।

पुरी

ओडिशा का पुरी चारो धामों में से एक है। पुरी में भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर है। पितृपक्ष में यहां पर श्राद्ध और पिंडदान करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि यहां पर किया गया श्राद्धकर्म आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाता है। यही कारण है कि हर साल आश्विन माह के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु पुरी आते हैं।
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