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Raksha Bandhan 2025: भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण से जुड़ा है रक्षाबंधन का पर्व, ऐसे हुई थी शुरूआत

By Astro panchang | Aug 04, 2025

इस बार 09 अगस्त 2025 को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाई की सभी प्रकार के अनिष्ट से रक्षा हो इस कामना से उसकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं। वहीं भाई भी अपनी बहनों की हर तरह से रक्षा किए जाने का संकल्प लेते हैं। बता दें कि रक्षाबंधन का पर्व इस भाई-बहन तक सीमित नहीं है। बल्कि देवी-देवताओं को भी राखी बांधने की परंपरा रही है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको देवराज इंद्र, भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण से जुड़ी पौराणिक कहानियों के बारे में बताने जा रहे हैं।

इंद्राणी ने बांधा रक्षा सूत्र

पौराणिक कथा के मुताबिक असुरों और देवताओं के बीच युद्ध हो रहा था। इसमें असुर लगातार देवराज इंद्र पर हावी हो रहे थे। तब इंद्र की पत्नी इंद्राणी परेशान होकर देवगुरु बृहस्पति के पास इसका उपाय पूछने गईं। इस पर देवगुरु बृहस्पति ने उनको एक पवित्र धागा बनाने और उसको अभिमंत्रित कर इंद्र की कलाई पर बांधने की सलाह दी।

तब इंद्राणी ने ऐसा ही किया और उस युद्ध में इंद्रदेव ने विजय प्राप्त की। बताया जाता है कि इस घटना के बाद रक्षासूत्र बांधने की परंपरा की शुरूआत हुई थी। बाद में यह भाई-बहनों के पवित्र रिश्ते को मजबूत करने का त्योहार बन गया। वहीं वर्तमान समय में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी उन्नति और सुरक्षा की कामना करती हैं।

राजा बलि को देवी लक्ष्मी ने बांधी थी राखी

असुर राजा बलि एक महान दानवीर थे। राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरे कर लिए थे और स्वर्ग पर अपना अधिकार करने का प्रयास कर रहे थे। तब उनको रोकने के लिए देवताओं के अनुरोध पर भगवान श्रीहरि विष्णु ने वामन अवतार लिया। वामन अवतार में श्रीहरि राजा बलि के पास भिक्षा लेने गए और उन्होंने दान में तीन पग भूमि मांगी थी और राजा बलि ने इसको स्वीकार कर लिया।

भगवान विष्णु ने दो पग में आकाश और पाताल नाप लिया। वहीं तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न भगवान श्रीहरि ने वरदान मांगने को कहा। तब बलि ने भगवान श्रीहरि से पाताल लोक में अपने साथ रहने का वरदान मांगा।

भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। इधर लक्ष्मी जी इस बार से परेशान हो गए। ऐसे में नारायण वापस लाने के लिए लक्ष्मी ने एक गरीब ब्राह्मणी का रूप बनाया और राजा बलि के पास पहुंची। उन्होंने राजा बलि को राखी बांधी और श्रीहरि को वापस बैकुंठ लाने जा वचन लिया। इस तरह से राजा बलि को राखी बांधकर लक्ष्मी नारायण को बैकुंठ वापस ला सकी थीं।

द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को बांधी थी राखी

महाभारत युद्ध से पहले एक सभा में शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को अपशब्द कहना शुरू किया। लेकिन शिशुपाल की मां यानी की अपनी बुआ से श्रीकृष्ण ने उसके 100 अपराधों को क्षमा करने का वचन दिया था। ऐसे में जब शिशुपाल ने श्रीकृष्ण को अपशब्द कहने शुरू किए, तो उन्होंने चेतावनी दी लेकिन शिशुपाल नहीं माना।

तब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल पर सुदर्शन चक्र चला दिया था। इस दौरान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का थोड़ी सा टुकड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ पर बांधा था। वहीं जब बाद में द्रौपदी का चीरहरण हुआ था, तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के चीर का ऐसा कर्ज चुकाया कि दुशासन साड़ी खींचते-खींचते थक गया, लेकिन द्रौपदी की लाज पर आंच नहीं आई थी।
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