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Lingaraj Temple: लिंगराज मंदिर में वर्जित है गैर हिंदुओं का प्रवेश, जानिए मंदिर की मान्यता और इतिहास

By Astro panchang | Jun 06, 2025

हमारे देश में भगवान शिव को समर्पित तमाम मंदिर हैं। इनमें से एक फेमस मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग है। जहां पर इन 12 मंदिरों में शक्ति शिवलिंग स्थापित है। हालांकि शिवलिंग की पूजा में कुछ चीजों का इस्तेमाल वर्जित माना जाता है। जैसे भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल, केतकी के फूल और श्रृंगार आदि का सामान अर्पित करने की मनाही होती है। लेकिन एक मंदिर ऐसा है, जहां पर शंकर जी के दिल में भगवान विष्णु बसते हैं। इनको द्वादश ज्योतिर्लिंग का राजा भी कहा जाता है। यह मंदिर ओडिशा के भुवनेश्वर में मौजूद भगवान लिंगराज का मंदिर है। तो आइए जानते हैं भगवान लिंगराज मंदिर के बारे में...

लिंगराज का मंदिर
ओडिशा के भुवनेश्वर में भगवान लिंगराज का मंदिर मौजूद है। इसकी पहचान 12 ज्योतिर्लिंगों के राजा के तौर पर होती है। यहां पर भगवान लिंगराज विराजते हैं। इस मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसके प्रांगण में छोटे-बड़े करीब 150 मंदिर हैं। धार्मिक मान्यता है कि सोमवंशी राजा ययाति प्रथम ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यहां पर विराजमान लिंगराज स्वयंभू हैं। बताया जाता है कि यह मंदिर दुनिया का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां पर भगवान शिव को बेलपत्र के साथ तुलसी दल भी अर्पित किया जाता है। क्योंकि मंदिर में भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु भी विराजते हैं।

धार्मिक मान्यताएं
बताया जाता है कि लिंगराज मंदिर का निर्माण करीब 7वीं शताब्दी के आसपास राजा ययाति केशरी ने कराया था। माना जाता है कि रोजाना इस मंदिर में लगभग 6 हजार लोग दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में आकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं, उनका जीवन सफल हो जाता है। साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। हालांकि इस मंदिर में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। मंदिर के पास एक ऊंचा चबूतरा बना है, जिससे कि दूसरे लोग भी वहां से इस मंदिर को देख सकें।

शिवजी-विष्णु जी की साथ होती है पूजा
देशभर में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा होती है। इस मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में जो शिवलिंग है, वह ग्रेनाइट पत्थर का है। लिंगराज मंदिर 150 मीटर वर्गाकार में फैली है। मंदिर में 40 मीटर की ऊंचाई पर कलश लगाया गया है। इस मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है, वहीं अन्य छोटे प्रवेश द्वार उत्तर और दक्षिण दिशा में हैं।

कुआं है आकर्षण का केंद्र
बता दें कि मंदिर के दाईं ओर छोटा सा कुआं है। जोकि आकर्षण का खास केंद्र है। इस कुंए को मरीची कुंड के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस कुएं में स्नान करने से जातक को संतान की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है, जिसके पानी से मंदिर का बिंदुसार सरोवर भरता है। जो भी इस सरोवर में स्नान करता है, उसको शारीरिक और मानसिक कष्ट रोग दूर होते हैं।
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