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क्या बेटियाँ भी कर सकती हैं पिंडदान? जानें क्या कहते हैं हमारे शास्त्र

By Astro panchang | Sep 04, 2020

पितृ पक्ष की शुरूआत हो चुकी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष से लेकर अमवस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। इस साल पितृ पक्ष 02 सितम्बर 2020 से 17 सितंबर 2020 तक है। हिन्दू धर्म केअनुसार पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका श्राद्ध करना बहुत जरूरी माना गया है। पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और आशीर्वाद देती है। आमतौर पर श्राद्ध कर्म पुत्र करता है और अगर पुत्र ना हो तो पिंड दान पौत्र द्वारा किया जाता है। लेकिन कई बार यह प्रश्न भी उठता है कि क्या महिलाएं या पुत्रियां श्राद्ध कर सकती हैं या नहीं? कई जगहों पर महिलाओं के श्राद्ध करने पर मनाही है लेकिन इसके साथ ही भारत में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित ऐसे कई राज्य हैं जहां पुत्र या पौत्र के आभाव में पत्नी, बेटी, बहन या नातिन ने भी मृतक संस्कार या श्राद्ध कर्म आरंभ कर दिए हैं। आइए आज के इस लेख में जानते हैं कि क्या महिलाऐं पिंड दान कर सकती है या नहीं। इसके अलावा हम आपको इसकी विधि के बारे में भी बताएंगे -  

पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महिलाओं को भी है श्राद्ध और पिंड दान करने की अनुमति 

वाल्मिकी रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। तभी माता सीता को महाराज दशरथ की आत्मा के दर्शन हुए जो उनसे पिंडदान की मांग कर रही थी। तब माता सीता ने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया। इससे राजा दशरथ की आत्मा ने प्रसन्न होकर माता सीता को आशीर्वाद दिया।  

गरूड़ पुराण में भी इस बात का वर्णन है कि ज्येष्ठ या या कनिष्‍ठ पुत्र के अभाव में पत्‍नी, बेटी या बहु को श्राद्ध करने का अधिकार है। पति, पिता या कुल में पुरुष सदस्य के अभाव में या उसके होने पर भी यदि वह श्राद्ध कर्म कर पाने की स्थिति में नहीं हो तो परिवार की कोई महिला पितरों का श्राद्ध कर सकती है।

पिंडदान क्या होता है?
अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए किया जाने वाला दान ही पिंडदान है। पिंड का मतलब होता है गोल। पिंड दान में आटे से बने गोल पिंड का दान किया जाता है इसलिए इसे पिंड दान कहा जाता है। पिंड दान में चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर तैयार किए गए पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ पितरों को अर्पित किया जाता है। 

क्या बेटियां भी कर सकती है पिंडदान?
हिन्दू धर्म में पिता की मृत्यु के बाद आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए बेटों द्वारा पिंडदान और तर्पण किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यदि पितरों का पिंडदान और तर्पण ना किया जाए तो उनकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता है। लेकिन अगर पुत्र ना हो तो पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए पुत्री भी श्राद्ध कर्म और पिंड दान कर सकती है। शास्त्रों में भी बेटियों द्वारा पिंडदान करने का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों के अनुसार जब महिलाऐं व्रत-अनुष्ठान कर सकती हैं तो पिंड दान भी कर सकती हैं। 

पिंडदान की विधि
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय ही किया जाना चाहिए। श्राद्ध कर्म या पिंडदान करते समय सफेद कपड़े ही पहनें।
पिंड दान हेतु जौ के आटे या खोये से पिंड बनाएं। चावल, कच्चा सूत, फूल, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, तिल, जौ, दही से पिंड का पूजन करें।
इसके बाद पिंड को हाथ में लेकर पिंड को अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य से छोड़ें। पिंड दान करते हुए इस मंत्र का जाप करें - ‘इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा।’ 
इस तरह से कम से कम तीन पीढ़ी के पितरों का पिंडदान करना चाहिए।
पिंडदान करने के बाद पितरों को श्रद्धा भाव से याद करें व उनका नमन करें। इसके बाद पिंड को जल में प्रवाहित कर दें।
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