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Chaitra Navratri 2020: इस नवरात्रि ऐसे करें कलश स्थापना, मिलेगा शुभ फल

By Astro panchang | Mar 22, 2020

नवरात्रि माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों को समर्पित है जिन्हें साल में दो बार मनाया जाता है, इन्हें शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में चैत्र का महीना बहुत ही पवित्र माना जाता है। चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौं रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। चैत्र नवरात्रि हर वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की परेवा से मनाई जाती है। इस साल यह नवरात्रि 25 मार्च मंगलवार से आरम्भ होंगे और इनका समापन 02 अप्रैल को होगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में माता की पूजा अर्चना करने से दुर्गा माँ का आशीर्वाद मिलता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्री में चार सर्वार्थसिद्धि, एक अमृतसिद्धि और एक रवियोग भी आएगा। 

प्रचलित कथाओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा ने ब्रम्हाजी को सृष्टि की रचना करने का काम सौंपा था और इस दिन दुर्गा माँ ने सभी देवी-देवताओं के काम का बटवारा किया था इसलिए इस दिन को सृष्टि के निर्माण का दिन माना जाता है। इन्हीं नवरात्रि से हिन्दू वर्ष का आरभ माना जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन 7 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों का निर्माण हुआ था।

नवरात्रि का महत्व
हिन्दू धर्म में नवरात्रि का अपना महत्व है। हर साल में चार बार नवरात्रि आती हैं। इन चार नवरात्रि में से दो नवरात्रि गुप्त होती हैं जो आषाढ़ और माघ महीने में पड़ती है, आमतौर पर इन गुप्त नवरात्रि को मनाया नहीं जाता। तंत्र साधना करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि विशेष मायने रखती हैं। इसके अलावा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्रि काफी लोकप्रिय है। सिद्धि साधना के लिए शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है।

नवरात्रि के नौ दिन
25, मार्च 2020, बुधवार- शैलपुत्री माता की पूजा
26, मार्च 2020, गुरुवार- ब्रह्मचारिणी माता की पूजा
27, मार्च 2020, शुक्रवार- चंद्रघंटा माता की पूजा
28, मार्च 2020, शनिवार- कुष्मांडा माता की पूजा
29, मार्च 2020, रविवार- स्कंदमाता की पूजा
30, मार्च 2020, सोमवार- कात्यायनी माता की पूजा
31, मार्च 2020, मंगलवार- कालरात्रि माता की पूजा
1, अप्रैल 2020, बुधवार- महागौरी माता की पूजा
2, अप्रैल 2020, गुरुवार- सिद्धिदात्री माता की पूजा

कलश स्थापना के लिए सामग्री
कलश, कलश के नीचे रखने के लिए मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, लाल रंग का आसन, जौ, मौली, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, चावल, अशोका या आम के 5 पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, माता का श्रृंगार और फूलों की माला।

कलश स्थापना विधि
कलश स्थापना करने से पहले मंदिर को गंगा जल से साफ किया जाता है। कलश में सात तरह की मिट्टी, सुपारी और मुद्रा रखी जाती है इसके अलावा आम के पांच या फिर सात पत्तों से कलश को सजाया जाता है, कलश के बीच में नारियल को लाल चुनरी में लपेट कर रखा जाता है। कलश के नीचे जौ बोए जाते हैं और इन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है। माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर मंदिर के मध्य में स्थापित की जाती है इसके बाद व्रत का संकल्प लिया जाता हैं। व्रत के संकल्प के बाद मिट्टी की वेदी बना कर उसमें जौ बोए जाते हैं। इस वेदी पर कलश स्थपित किया जाता है। इसके बाद माँ दुर्गा का ध्यान करें और इस श्लोक का जाप करें-
 
सर्व मंगल मांगल्यै, शिवे सर्वार्थ साधिके
 शरण्यै त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते

नवरात्रि की पूजा के पहले दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। पूजा पाठ के समय अखंड दीप भी जलाया जाता है जो नवरात्रि के व्रत पूरे होने तक जलता रहना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद श्री गणेश जी और माँ दुर्गा की आरती की जाती है और नौ दिनों के व्रत या नौ में से कुछ दिनों के व्रत का संकल्प लिया जाता है। 

अखंड दीप जलाते समय ध्यान में रखें ये बात
दुर्गा सप्तशती के अनुसार अखंड दीप जलाने का नवरात्रि में विशेष महत्व है। इसलिए अखंड दीप जलाते हुए कुछ चीजों का आपको विशेष ध्यान रखना होगा जैसे अखंड दीप जलाने वाले व्यक्ति को जमीन पर ही बिस्तर लगाकर सोना पड़ता है। किसी भी हाल में अखंड दीप बुझना नहीं चाहिए और इस दौरान घर में भी साफ सफाई का आपको खास ध्यान रखा होगा।
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