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Krishnapingla Sankranti Chaturthi 2025: 14 जून को किया जा रहा कृष्ण पिंगल संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानिए महत्व

By Astro panchang | Jun 14, 2025

हर महीने में दो चतुर्थी होती है और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को 'विनायक चतुर्थी' कहा जाता है। वहीं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को 'संकष्टी चतुर्थी' कहा जाता है। इस बार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को कृष्ण पिंगल संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जा रहा है। इस व्रत को करने से जातक को भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस बार 14 जून 2025 को कृष्ण पिंगल संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जा रहा है। तो आइए जानते हैं कृष्ण पिंगल संकष्टी चतुर्थी व्रत की तिथि, मुहू्र्त, पूजन विधि और महत्व के बारे में...

तिथि और मुहूर्त
वैदिक पंचांग के मुताबिक 14 जून की दोपहर 03:46 मिनट से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की शुरूआत हो रही है। वहीं अगले दिन यानी की 15 जून 2025 की दोपहर 03:51 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। ऐसे में उदयातिथि के मुताबिक 14 जून 2025 को कृष्ण पिंगल संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जा रहा है।

चंद्रोदय का समय
संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन चंद्रदेव की उपासना करने का विधान होता है। इस दिन चंद्रोदय का समय रात 10:23 मिनट पर होगा।

पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि करके साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें। फिर चंद्रोदय काल तक व्रती नियमपूर्वक रहें। वहीं चंद्रोदय होने पर मिट्टी से गणेश की मूर्ति बनाएंअब लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित भगवान गणेश को स्थापित करें। पूजा के दौरान व्रती का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए। फिर पंचामृत से भगवान गणेश को स्नान कराएं और फल, फूल, रोली, मोली, अक्षत आदि अर्पित करें। इसके बाद मोदक का भोग अर्पित करें। गणेश भगवान की आरती करें और 'ॐ गणेशाय नमः ' अथवा ' ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करें। अब तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें फूल, अक्षत, कुश और लाल चंदन डालकर चंद्रदेव को अर्घ्य दें। फिर गणेश भगवान की कथा का पाठ करें।

महत्व
बता दें कि इस विशेष दिन पर भगवान गणेश को एकदंत के रूप में पूजा की जाती है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना करने से घर में सुख-सौभाग्य आता है और परिवार में आने वाली बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है। भगवान गणेश की पूजा करने से रुके हुए कार्य पूरे होते हैं। आषाढ़ चतुर्थी को एक दूसरा कल्याणकारी व्रत माना जाता है। जो भी जातक इस व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसको पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
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