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जानिए क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती और किन लोगों लिए यह त्यौहार है बहुत ही ज्यादा लाभकारी

By Astro panchang | Sep 12, 2020

भारत में प्रत्येक दिन त्योहारों के रूप में लोगों के महत्वपूर्ण होता है। भारत के हर कोने में कभी ना कभी किसी ना किसी तरह से त्यौहार मनाया जाता है। जैसा कि सभी को पता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष वाला देश है। यहां अलग अलग धर्म के लोग रहते हैं और अपनी इच्छा अनुसार अपने त्यौहार को मनाते हैं। ऐसे ही सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है और उन्हें देवता समान माना जाता है।भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है। तकनीकी जगत के भगवान विश्वकर्मा जी का त्यौहार प्रतिवर्ष कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है जोकि अमूमन 16 या 17 सितंबर को पड़ती है। इस साल भी भगवान विश्वकर्मा का त्यौहार 16 या 17 सितंबर को मनाया जाएगा। आम बोलचाल की भाषा में इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्‍म भादो माह में हुआ था। हर साल 17 सितंबर को उनके जन्‍मदिवस को विश्‍वकर्मा विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इनको भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। विश्वकर्मा को दुनिया में सबसे पहले वास्तु और इंजीनियरिंग की उपाधि दी गई है। यदि आप भी अपने कारोबार को आगे बढ़ाना चाहते हैं और अपने घर में सुख समृद्धि लाना चाहते हैं। तो आप भी विश्वकर्मा जी का त्यौहार जरूर बनाए। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि किस तरह से आप विश्वकर्मा जयंती मना सकते हैं।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि

यदि आप भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना चाहते हैं तो आप दिल खोल कर उनकी पूजा आराधना कर सकते हैं।कहा जाता है, कि यह देवताओं के अस्त्र-शस्त्र महल और आभूषण आदि बनाने का काम करते थे। भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन फैक्ट्रियों और ऑफिसों में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है। ताकि व्यक्ति का व्यापार और ज्यादा तरक्की करें। पूजा करने के लिए आप सबसे पहले अक्षत अर्थात चावल, फूल, मिठाई, फल रोली, सुपारी, धूप, दीप, रक्षा सूत्र, मेज, दही और भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर इत्यादि की व्यवस्था कर लें। सारी सामग्री का प्रबंध करने के बाद अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं। उसके बाद पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ विश्वकर्मा जी की मूर्ति की पूजा करें और उनके ऊपर फूल अर्पण करें, साथ ही कहे की - हे विश्वकर्मा जी आइए, मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।

विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त 2020

इस वर्ष कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का आयोजन हो रहा है। यह एक शुभ स्थिति है। संक्रांति का पुण्य काल 16 सितंबर- सुबह 10 बजकर 9 मिनट से 11 बजकर 37 मिनट तक है। इस शुभ मुहूर्त में भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से आपके कारोबार में बहुत ही ज्यादा बरकत होगी और आप किसी भी बड़े नुकसान से बच पाएंगे।

इन राज्यों में होती है विश्वकर्माजी की पूजा

यदि आप पहली बार विश्वकर्माजी के बारे में पढ़ रहे हैं या जानने की कोशिश कर रहे हैं तो आपको लग रहा होगा कि यह ज्यादा जगह नहीं मनाई जाती। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती है। जो भी लोग कारखाने फैक्ट्री या फिर मशीनों से संबंधित कारोबार में काम करते हैं उनका यह मानना है कि विश्वकर्मा जी की पूजा करने से मशीनें जल्दी खराब नहीं होती और अच्छे से काम करती हैं, साथ ही मशीन काम में कभी भी धोखा नहीं देती। इस दिन बड़ी फैक्ट्री हो या छोटा कारोबार हर जगह लोग अपने काम को रोक कर अपनी मशीनों की साफ सफाई करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। ताकि वह अपने काम में बरकत पा सकें।

भगवान विश्वकर्मा ने किया था इनका निर्माण

अब आपके मन में यह विचार आ रहा होगा कि हम विश्वकर्मा जयंती क्यों मनाते हैं? जैसे की हम और त्यौहारों के पीछे उनका इतिहास पढ़ते आए हैं तो मन में यह इच्छा जरूर आ रही होगी कि आखिर विश्वकर्मा डे या जयंती क्यों मनाई जाती है? तो चलिए हम आपको बताते हैं, दरअसल मान्यता यह है कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र वज्र का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। साथ में जगत के निर्माण के लिए विश्वकर्मा ने ब्रह्मा की सहायता की थी और संसार की रूप रेखा का नक्शा तैयार किया था। इस संसार को बनाने में जितनी ब्रह्मा जी की कृपा है उतना ही विश्वकर्मा जी की मेहनत है। आपको यह जानकर और ज्यादा हैरानी होगी कि ओडिशा में स्थित भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण भी विश्वकर्मा ने किया था और भी बड़े-बड़े कारनामे विश्वकर्मा के नाम लिखे हुए हैं। माता पार्वती के कहने पर ही विश्वकर्मा ने सोने की लंका का निर्माण किया था। जब हनुमान जी ने सोने की लंका जला दी थी। तो रावण ने दोबारा विश्वकर्मा को बुलाकर लंका का पूर्ण निर्माण करवाया था। साथ ही बाल गोपाल नंद के लाल श्री कृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण किया था।
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