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शादी से पहले बहुत जरूरी है कुंडली मिलाना, नहीं तो जीवन में हो सकती हैं कई परेशानियाँ

By Astro panchang | Oct 05, 2020

हिन्दू धर्म में विवाह को व्यक्ति के जीवन का सबसे मत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। भारत में शादी तय होने से पहले वर-वधु का कुंडली मिलान करवाया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विवाह से पूर्व वर-वधु का कुंडली मिलान बहुत आवश्यक माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक यदि वर-कन्या का कुंडली मिलान ना किया जाए या उनके गुण ना मिलते हों तो उन्हें जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ज्योतिषशास्त्र में ग्रह, योग, नक्षत्र, राशि आती के आधार पर वर और कन्या का कुंडली मिलान किया जाता है। कुंडली मिलान से इस बात का पता चलता है कि वर और कन्या का वैवाहिक संबंध कैसा रहेगा।
 
विवाह के लिए वर-वधु की कुंडली मिलान या गुण मिलान को अष्टकूट मिलान या मेलापक मिलान भी कहते हैं। इसमें लड़के और लड़की के जन्म के समय के ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अष्टकूट सूत्र में वर-वधु के आपसी गुणों को कुल 8 भागों में बांटा गया है। इस तरह से कुल कूट आठ होते हैं - वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी। अष्टकूट मिलान में प्रत्येक गुण के लिए लग-अलग अंक निर्धारित हैं। कुंडली मिलान में अधिकतम 36 अंक होते हैं, वहीं अष्टकूट मिलान में कम से कम 18 गुण मिलने पर ही पंडित या ज्योतिषी विवाह की अनुमति देते हैं। वर-कन्या के 18 से ज्यादा गुण मिलने पर ही दोनों का विवाह उचित माना जाता है।

वर्ण 
वर्ण का अर्थ होता है स्वभाव और रंग। वर्ण चार प्रकार होते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। लड़के या लड़की की जाति कुछ भी हो लेकिन उनका स्वभाव और रंग इन चारों में से कोई एक होगा। कुंडली मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यदि वर-वधु के वर्ण में समानता है तो दोनों की कार्यक्षमता अच्छी रहेगी जिससे विवाह के बाद दोनों का विकास होगा। 

वश्य 
वश्य का संबंध भी व्यक्तित्व से है। वश्य पाँच प्रकार के होते हैं- चतुष्पाद, कीट, वनचर, द्विपाद और जलचर। वश्य का संबंध व-वधु का एक-दूसरे की तरफ आकर्षण से है। वर-वधु की कुण्डली में वश्य के अच्छे अंक होने से दोनों से उत्पन्न होने वाली सन्तान सुंदर, सुशील और भाग्यशाली होगी। 

तारा 
तारा का संबंध वर-वधु के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई है- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं। लड़के-लड़की की कुण्डली में तारा के अंक अच्छे होने से विवाह के बाद दोनों के भाग्य में वृद्धि होगी। 

योनि 
योनि का संबंध संभोग से होता है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्‍वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। शारीरिक संतुष्टि के लिए योनि मिलान आवश्यक होता है। विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है।

ग्रह मैत्री 
राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। वर-वधु की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता प्रेमभाव को बढ़ाती है। इससे जीवन सुखमय और तनाव रहित रहता है।

गण 
गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति से है। गण तीन प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य। वर-वधु की कुण्डली में गण के अंक बेहतर होने पर  दोनों का स्वभाव आपस में मेल खाता है तथा सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

भकूट 
भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। भकूट से यह जाना जाता है कि विवाह के बाद वर-वधु का एक-दूसरे का साथ कितना रहेगा। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है।

नाड़ी 
नाड़ी का संबंध संतान से है। नाड़ी मिलान से इस बात का पता चलता है कि दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी। नाड़ी एक होने से से संतान-संबंधी दिक्कतें आती है और दोनों का स्वास्थ्य खराब होने की संभावना अधिक  रहती है।
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