मांगलिक दोष वैदिक ज्योतिष का एक ऐसा विषय माना जाता है, जिसको लेकर लोगों के मन में अक्सर शंका, डर और सवाल पैदा करता है। कुंडली में यह दोष तब बनता है, जब मंगल कुछ विशेष भावों में स्थित होता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि मांगलिक दोष विशेष रूप से वैवाहिक जीवन को प्रभावित कर सकता है। यह दोष विवाह में देरी, मतभेद और असंतुलन दे सकता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको मांगलिक दोष के बारे में बताने जा रहे हैं। साथ ही यह भी जानेंगे कि विवाह योग पर इसका क्या प्रभाव होता है।
जानिए क्या है मांगलिक दोष
जब कुंडली में मंगल कुछ विशेष भावों में स्थित होता है, तब मांगलिक दोष उत्पन्न होता है। विशेष रूप से जब मंगल लग्न, चंद्रमा या शुक्र से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या फिर द्वादश भाव में बैठा होता है, तब कुंडली में मांगलिक दोष बनता है।
मांगलिक दोष की स्थिति ऐसी ऊर्जा को उत्पन्न करता है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह आपके विवाह के योग और जीवन के अन्य पहलुओं को प्रभावित कर सकता है। मांगलिक दोष को लेकर मुख्य चिंता इसके वैवाहिक सामंजस्य पर प्रभाव है। जोकि विवाह में देरी, कलह या फिर अलगाव जैसी संभावनाओं की वजह बन सकता है।
विवाह योग पर प्रभाव
मांगलिक दोष वाले जातकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि क्या यह योग उनके वैवाहिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। परंपरागत रूप से माना जाता है कि मांगलिक दोष में विवाह देरी से या फिर उपयुक्त जीवनसाथी मिलने में कठिनाई पैदा कर सकता है।
हालांकि इस योग को संतुलित दृष्टिकोण से देखना जरूरी होता है। कुछ लोग इस दोष को महत्वपूर्ण मानते हैं, तो वहीं कुछ सच्चे वैदिक ज्योतिषीय उपायों जैसे दान, अनुष्ठान या फिर दूसरे मांगलिक से विवाह करने से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
प्रभावित होते हैं जीवन के अन्य क्षेत्र
विवाह के अलावा मांगलिक दोष जीवन के अन्य क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, करियर और वित्तीय स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है। मंगल से जुड़ी ऊर्जा में जातक अधिक आक्रामक या फिर उग्र स्वभाव वाला हो सकता है। जोकि जीवन के कई क्षेत्रों में प्रकट हो सकता है।
हालांकि हर व्यक्ति के लिए इसका प्रभाव अलग होता है। इसलिए किसी अनुभवी ज्योतिष द्वारा बनाई गई व्यक्तिगत रिपोर्ट के जरिए इसको अधिक बेहतर समझा जा सकता है।
विवाह में देरी
मांगलिक दोष वाले जातकों में विवाह में देरी को लेकर चिंता सामान्य है। ज्योतिष में यह देरी कुंडली में मंगल की ऊर्जा के संतुलित होने में लगने वाले समय से जुड़ी होती है। कुंडली में ग्रहों की दशा का अध्ययन किया जाता है, जिससे कि यह जाना जा सके कि विवाह के लिए सबसे अनुकूल समय कब आएगा। फिर भले ही शुरूआत में विलंब हो।
ज्योतिषी मंगल की स्थित के अलावा शुक्र, बृहस्पति और सप्तम भाव के स्वामी की स्थिति का भी विश्लेषण करते हैं, जिससे कि विवाह योग का व्यापक दृष्टिकोण मिल सके। ज्योतिषी शनि और बृहस्पति के गोचर के अलावा विवाह की अनुकूल दशा की अवधि का भी अध्ययन करते हैं। इन ग्रहों के प्रभाव को समझकर आप सही जीवनसाथी और सफल वैवाहिक जीवन के लिए बेहतर योजना बना सकते हैं।